पशु रोगो की जांच कब, क्यों और कैसे करायें

प्रस्तुति – डा मानसी

पशु जन स्वास्थ्य एवं जानपादिक विभाग़ पशु पालन महाविद्धालय
गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्धोगिक विश्वविद्धालय, पंतनगर 263145

पशुपालक एवं किसान सामान्यताः गाय व भैंस, दूध के लिए, बकरी दूध व माँस के लिय, भेड़ ऊन व माँस के लिए, ऊँट भार ढोने के लिए, सूअर माँस के लिए तथा मुर्गी अण्डे व माँस के लिए पालते हैं। यदि पशु स्वस्थ रहें तो पशुपालक भी प्रसन्न रहते हैं क्योंकि उन्हें पशुओं से पूरा उत्पादन मिलता है व भरपूर आर्थिक लाभ होता है। मगर ऐसा हर समय संभव नहीं हो पाता। अक्सर देखा गया है कि पालतू पशु किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त हो जाते है। बीमार होने से पशु की उत्पादन क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है व पशु पालक को निम्नलिखित मदों में हानि उठानी पड़ती है।

  1. पशु उत्पादन कम होने या बन्द होने से हानि
  2. बीमार पशु के उपचार तथा रख-रखाव का खर्चा
  3. पशु चिकित्सक की फीस आदि का खर्चा
  4. पशुपालक व उसके परिवारी जनों का तनाव ग्रस्त रहना
  5. पशु के ठीक न होने अथवा मरने की स्थिति में सम्पूर्ण हानि

जाँच कब करायें

1. जब पशु के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा हो। दूध देने वाले पशुओं का दूध उत्पादन कम हो रहा हो अथवा पशु चारा कम खा रहे हों, पानी कम पी रहे हों या चलने, उठने-बैठने में कठिनाई महसूस करते हों।
2. जब पशु को बुखार हो व बैचेनी महसूस करता हो।
3. जब भार ढोने वाले पशु ठीक से कार्य सम्पादन नहीं कर पा रहे हों।
4. जब नये पशु खरीद कर अपने घर या बाडे में रखे हों।
5. जब पशु में बीमारी का कोई लक्षण जैसे दस्त, कब्ज, दर्द, चारा न खाना, बुखार, त्वचा पर क्षतस्थल आदि दिखता हो।
6. प्रति वर्ष या प्रति 6 महीने के अन्तराल पर नियमित जाँच
7. माँस वाली मुर्गी में वजन कम बढ़ रहा हो।
8. मुर्गियों में मृत्यु दर सामान्य से अधिक हो रही हो।
9. मुर्गी का अण्डा उत्पादन कम हो रहा हों।
10. मुर्गी घर में बीट रक्त युक्त दिखायी पडे़
11. सूअरों में वजन कम बढ़ रहा हो।

जाँच क्यों करायें

1. पशु की तथा पशु से रक्त, मूत्र, मल अथवा मरने के पश्चात ऊतक व अंगों की जाँच कराने से पशु की बीमारी का पता चलता है जिससे उस पशु का तो उचित उपचार त्वरित हो सकता है तथा अन्य संम्पर्क में आये पशुओं का भी उस रोग से बचाव किया जा सकता है।
2 रोग की जांच होने से उचित उपचार पर खर्चा कम आता है क्योंकि पशु चिकित्सक सिर्फ उसी रोग से ठीक करने सम्बन्धी दवा देते हैं। यदि बिना जाँच के उपचार कराया जाये तो उस समय कई प्रकार की दवायें दी जाती है जिन पर अनावश्यक खर्चा होता है।
3. पशुओं में कई प्रकार के संक्रामक व छूत के रोग होते हैं जो शीघ्रता से एक से दूसरे पशु में फैल सकते हैं व पूरे गांव या एक क्षेत्र के पशुओं में बीमारी उत्पन्न कर सकते हैंै। ऐसी स्थिति में शुरूआती जांच से बीमारी का पता चलने पर उसे अन्य स्वस्थ्य पशुओं में फैलने से रोका जा सकता है।
4 कई प्रकार की बीमारी ऐसी हैं जो पशुओं से मनुष्य में हो सकती हैं। अतः त्वरित निदान व जाँच से पता चलने पर उन रोगों पर नियंत्रण के उपाय अपनाकर मनुष्यों में पशु जन्य रोग होने से बचाव किया जा सकता है।
5. पशुओं में नियमित जांच से विभिन्न रोगों के टीकाकरण कर पशुओं के प्रभाव का भी पता चल सकता है। कई बार जांचने पर टीकाकरण के प्रभाव का भी पता चल सकता है। जिससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि टीकाकरण के फलस्वरूप पशु में उचित रोग प्रतिरोधी क्षमता उत्पन्न हो चुकी है अथवा नहीं।
6. नियमित जांच से पशुओं में होने वाली बीमारियों के पूर्वानुमान में भी मदद मिलती है।

जाँच कैसे करायें

1. पशुओं में रोग की जांच कराने के लिए अपने नजदीक के पशु चिकित्सक से सम्पर्क करें जो पशु से विभिन्न नमूने यथा रक्त, सीरम, मल, मूत्र, त्वचा की खुरचन आदि लेकर प्रयोगशाला भिजवा सकते हैं।
2. पशुपालक स्वयं भी पशु के मल (गोबर) का नमूना किसी साफ कागज की पुडिया में या कांच/प्लास्टिक की शीशी में लेकर प्रयोगशाला ला सकते हैं जिससे पशु के पेट में परजीवीयों की जाँच की जा सकती है। गोबर के नमूने एकत्रित करने के लिए सीधे पशु के मलाशय से कुछ गोबर लिया जा सकता है। अथवा ताजे करे हुए गोबर में से बीच का कुछ भाग नमूने के लिए लिया जा सकता है। गोबर के नमूने के साथ मिट्टी या अन्य कूड़ा-करकट नहीं आना चाहिए।

जाँच के लिए नमूने प्रयोगशाला भेजने का तरीका

1. नमूने एकत्रित कर उन्हें अच्छी तरह से बन्द बरतन यथा शीशी, प्लास्क, बोतल आदि में रखना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि बरतन के अवयव बाहर न निकलें।
2. नमूने एकत्रित किये गये बरतन पर नमूने का नम्बर, पता/पशु नम्बर आदि अवश्य लिखें व इसका ख्याल रखें कि वह नम्बर/नाम/पता आदि मिटे नहीं। अच्छा तो यह रहता है कि पानी से खराब न होने वाली स्याही युक्त पैन से लिखा जायें। या एक सादा कागज पर लिखकर उसे बोतल बरतन पर चिपका देते हैं। फिर उस पर पारदर्शी टेप लगा दिया जाता है जिससे कि वहाँ लिखा नम्बर खराब नहीं होता।
3. नमूनों के साथ एक पत्र अवश्य भेजना चाहिए जिसमें सम्बन्धित नमूने के विषय में जानकारी यथा रोग का इतिहास, लक्षण, क्षतस्थल, नमूने का प्रकार, उपचार आदि का विवरण हो तथा यह भी दर्शाया गया हो कि किस प्रकार का परीक्षण किया जाना है।
4. इस प्रकार के पत्र की एक प्रति नमूने के साथ तथा एक प्रति साधारण डाक से अलग से भेजी जानी चाहिए। नमूने के साथ पता की प्रति को इस प्रकार संभालकर रखें कि वह खराब न हो।
5. नमूने भेजने के लिए व्यक्तिगत/स्पीडपोस्ट/कुरियर या पंजीकृत डाक का माध्यम अपनाया जाना चाहिए। इसमें व्यक्तिगत रूप से किसी व्यक्ति द्वारा नमूने यदि प्रयोगशाला पहँुचाये जांय तो यह उत्तम विधि है क्योंकि नमूने पहुँचाने वाला व्यक्ति नमूनों को संभालकर ले जायेगा व यदि रास्ते में बर्फ कम पड़ जाये/पिघल जाये तो नयी बर्फ भी दुबारा डाल लेगा।

पशु रोग जाँच के लिए नमूने एकत्रित, संरक्षित करने तथा प्रयोगशाला भेजने में बरते जाने वाली सावधानियां

1. जाँच हेतु नमूने पशु की मृत्यु के बाद जितना शीघ्र हो सके उतना शीघ्र एकत्रित करने चाहिए तथा प्रतिनिधि नमूना एकत्र करना चाहिए।
2. नमूने अच्छी तरह से संरक्षित कर भेजें ताकि वे रास्ते में खराब न हों।
3. नमूनों के साथ पूर्ण जानकारी यथा नम्बर, सम्बन्धित पशुपालक का नाम/पता आदि अवश्य होनी चाहिए।
4. जाँच के लिए नमूना भेजते समय इस बात का उल्लेख अवश्य हो कि कौन सी जाँच करायी जानी है।
5. रोग का इतिहास, रोग का वर्णन, शव परीक्षण के नतीजे व संभावित बीमारी का वर्णन अवश्य होना चाहिए।
6. पत्र की एक प्रति सीधे भेजी जानी चाहिए व एक प्रति नमूनों के साथ रखनी चाहिए।
7. नमूनों के बरतन इस प्रकार बाँधे जायें कि रास्ते में टकराकर टूटें नहीं। इसके लिए रूई, वस्त्र या थर्मोकाॅल का प्रयोग करें।