स्वच्छ मांस उत्पादन कैसे करे

प्रस्तुति – Dr. P.K. Singh

पशु उत्पाद विभाग़
पशु पालन विज्ञान महाविद्धालय
गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्धोगिक विश्वविद्धालय
पंतनगर.263145

भारत कें स्वच्छ मांस उत्पादन का महत्वपूर्ण स्थान है। यह न सिर्फ मनुष्यों के खाने के उपयोग हेतु प्रयोग किया जाता है अपितु जीविका उपार्जन का भी साधन है। स्वच्छ मांस उत्पादन की उपलब्धता के लिए इसे एक संगठित संस्था का रूप देने की आवश्यकता है। इसके अलावा कुछ अन्य बातें जैसे स्वच्छ एवं स्वस्थ पशु, साफ वातावरण, स्वच्छ कसाईघर, कसाइयों को वध सम्बंधित आधुनिक तकनीक की सही जानकारी का होना मांस उत्पादन के लिए आवश्यक है। भारत में इस क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए मांस की गुणवत्ता व स्वच्छ उत्पादन पर ध्यान देने की अत्याधिक जरूरत है।

मांस उत्पादन

मांस उत्पादन के लिए विशेषतः भैंस, भेड़, बकरी, सूअर व मुर्गी जैसे पशु पक्षी प्रयोग में आते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ जानवर जैसे घोड़ा, हिरण व अन्य जानवर का उपयोग भी कुछ देशों में किया जाता है। प्रायः देखा गया है कि मनुष्यों के रहने वाले स्थान पर पायी जाने वाली जानवरों की प्रजातियाॅं मांस उत्पादन के लिए इस्तेमाल की जाती है। विदेशों में अन्य जानवर जैसे घोड़ा (फ्रांस, इटली जर्मनी जापान) तथा कुत्तो (चीन, कनाडा, इंडोनेशिया) का उपयोग मांस के उत्पादन एवं उपभोग के लिए किया जाता है। भारत में गाय का मांस उपयोग हेतु वर्जित है।
पशुओं को मांस उत्पादन के लिए प्रयोग करने हेतु उनकी उम्र व वजन पर भी ध्यान देना आवश्यक है। भैंस के पड़वों को 250 किलो, भेड़ व बकरी के बच्चों को 20 किलो, मुर्गी के चूजों को 2 किलो तक खिला पिलाकर बढ़ाना चाहिए व तभी उनका उपयोग मांस उत्पादन हेतु किया जाना चाहिए। यह देश में पोषक पदार्थ के रूप में अनाज के कम उत्पादन की कमी को पूरा करने में सहायक हो सकता है।

मांस से प्राप्त होने वाले तत्व

मांसाहारी मनुष्यों के लिए यह प्रोटीन का महत्वपूर्ण स्त्रोत्र है। इसके अलावा यह हमारे शरीर में जिंक, सेलेनियम, फासफोरस, नियासिन, कोलीन राइबोफ्लेविन व लौह तत्व की भी पूर्ति करता है। विटामिन बी-12 व विटामिन 6 के लिए भी मांस एक अच्छा माध्यम माना जाता है। विभिन्न जानवरों में 100 ग्राम मांस से प्राप्त होने वाले प्रोटीन व वसा की मात्रा निम्न हैः-

पशुकैलोरी (मानक)प्रोटीन (ग्राम)वसा (ग्राम)
मछली110-24020-251-5
मुर्गी160287
भेड़2503014
बीफ210-45025-3635
Table

मांस उत्पादन हेतु कुछ सावधानियाँ

मांस उत्पादन के लिए उपयोग किए जाने वाले पशु के स्वास्थ्य से लेकर उसको एक खाद्य के रूप में लाए जाने तक कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। कसाईघर में भी कसाइयों की इस विषय में आवश्यक जानकारी, स्वच्छ मांस उत्पादित करने में सहायक सिद्ध होती है।
स्वस्थ पशु को एक निर्धारित वजन व उम्र तक विकसित किया जाना चाहिए। पशुओं को कसाईघर तक ले जाने का समुचित प्रबंध होना चाहिए। पशु के लिए हर समय साफ पानी व चारे की व्यवस्था पर ध्यान देना जरूरी है। यात्रा के दौरान पशुओं पर किसी प्रकार का दबाव नहीं होना चाहिए। दबाव की अवस्था में मांस की गुणवत्ता प्रभावित होती है। मांस का कम PH पानी और शर्करा (GLYCOGEN) की मात्रा मांस की गुणवत्ता को कम कर देती है।
कसाईघर में जानवरों को मारने व काटने की प्रक्रिया निश्चित है। प्रथम जानवरों को बेहोश (STUNNING) कर रक्त प्रवाह (BLEEDING) की जानी चाहिए। बेहोशी की प्रक्रिया पशुओं की तकलीफ को कम करने में मददगार सिद्ध होती है। पशुओं को बेहोश करने में कार्बन डाई आक्साइड, करंट (बिजली) अथवा बंदूक/पिस्तौल का उपयोग किया जाता है। रक्त प्रवाह की प्रक्रिया सही समय और सही तरीके से की जानी चाहिए। गाय व भैंस में जुगुलर शिरा तथा सूअर में प्राथमिक शिरा को काट कर इस क्रिया को किया जाता है। मांस में खून रह जाने से जीवाणुओं के पनपने व उसके जल्दी खराब होने की संभावना बढ़ जाती है। इन सारी प्रक्रियाओं के दौरान स्वच्छता का ख्याल रखना अत्यंत आवश्यक है।

अगर स्वच्छ तरीके से मांस उत्पादन किया गया है तो मांस को -1.5 degree Centigrade से पर छह हफ्तो तक बिना उपचारित किए रखा जा सकता है। इस दौरान मांस की सख्तता कम हो जाती है। मांस में कुछ रसायनों का उपयोग करने से मांस की गुणवत्ता जैसे रंग व स्वाद इत्यादि को बढ़ाया जा सकता है व उसको लंबे समय तक उपयोग हेतु रखा जा सकता है। नमक, नाइट्राइट, एस्कारबिक अम्ल, स्वीटनर्स (चीनी, कार्न सिरप), मोनोसोडियम ग्लूटामेट, एण्टी आक्सीडेन्ट्स और एसिडिफायर्स कुछ ऐसे रसायन हैं जो मांस को सुपाच्य और लंबे समय तक उपयोग किये जाने हेतु प्रयोग किये जाते है।
दूषित मांस/मांस उत्पाद द्वारा जनित बीमारियां
अस्वच्छ अथवा दूषित मांस मनुष्यों में कई प्रकार की बीमारी फैैलाते हैं । यह बीमारियां जीवाणु , विषाणु या परजीवी द्वारा हो सकती हैं । इनमें प्रमुख हैं साल्मोनैलौसिस , ई .कोलाई , कैम्पाइलोबैक्टर ,लिस्ट्ररियोसिस , शिगैलौसिस , स्टैफाइलोकोकस , क्लौस्ट्रीडियल संक्रमण, एस्टो वाइरस, हिपैटाइटिस ए, रोटा वाइरस, ट्रिचिनौसिस , सिसटीसर्काेसिस का संक्रमण।इन बीमारियों से ग्रसित होने पर मनुष्य को उल्टी ,दस्त, बुखार ,कमजोरी ,थकावट आदि लक्षण प्रकट होते हैं। कभी – कभी यह बीमारियां गंभीर रुप ले लेती है जिसमें चिकित्सीय परामर्श की आवश्यकता होती है।
मनुष्यों को बीमारियों से दूर रखने हेतु स्वच्छ मांस उत्पादन महत्वपूर्ण है।मांस उत्पादन करने वाले पशु का साफ, स्वच्छ एवं स्वस्थ होना अति आवश्यक है। वद्यशाला में स्वच्छ मांस उत्पादन संसाधन ( गुड मैनुफैक्चरिंग प्रैक्टिसेस,जी एम पी)का पालन करना अनिवार्य है। हैजार्ड एनालिसिस क्रिटिकल कन्टोल प्वाइंट (एच ए सी सी पी ) एक महत्वपूर्ण माध्यम है जिसके द्वारा हम उन बिन्दुओं/क्रियाओं का निरीक्षण करते हैं जहां उत्पाद के दूषित होने की संभावना अधिक होती है व उन दोषों को दूर करते हैं। यह माध्यम उत्पाद के खाने हेतु बनने तक सभी जगह इस्तेमाल होता है। इसके अलावा खाद्य पदार्थ को अच्छी तरह धोनेे और पकाने से भी कच्चे मांस व मांस उत्पाद आदि से होने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है। अतः स्वच्छ मांस उत्पादन व अच्छी प्रकार से पकाया हुआ मांस पदार्थ बीमारियों से बचाव हेतु अति आवश्यक है।
हमारे देश में 2009-10 में मांस का उत्पादन 4.0 मिलियन टन था जो 2010-11 में 4.2 मिलियन टन हो गया। प्रदेश में व देश में इस उद्योग को बढ़ावा देने की जरूरत है जो अनेक लोगों के लिए एक आजीविका का साधन भी है और इससे खाद्य समस्या का समुचित समाधान भी हो सकता है।