पशुओं में गर्मी मे होने वाली बीमारियाँ, बचाव व रोकथाम

प्रस्तुति – डा साक्षी थपलियाल

पशु चिकित्सा स्नातक

किसी भी मौसम का अत्यधिक प्रकोप स्वास्थ्य के लिए सदैव हानिकारक होता है। जैसे अत्यधिक बरसात, गर्मी या ठंड। तीव्र गर्मी का मौसम बीमारियों को निमन्त्रित करता है गर्मी के मौसम में तापमान जीवाणुओं व कीटाणुओं की बढ़ोत्तरी के लिए सबसे उत्तम माना जाता है। गर्मी का मौसम न केवल पशु बल्कि मनुष्यों का शरीर भी बीमारियों का घर बन जाता है इसलिए गर्मी के मौसम को सबसे गन्दा मौसम कहते हैं। गर्मी के मौसम में पशुओं का दाना-चारा व मनुष्यों का भोजन व अन्य खाने की वस्तुएँ जल्दी खराब हो जाती हैं उनमे बदबू आने लगती है व फफंुदी पैदा हो जाती है पशुओं व मनुष्यों की बीमारियों का सबसे बड़ा कारण यह बुसा हुआ चारा/भोजन ही है तथा दूसरा कारण यह है कि गर्मी में तापमान बढ़ने की वजह से कीटाणुओं को प्रजनन करने के लिए उपयुक्त तापमान मिल जाता है। गर्मी की वजह से पशुओं व मनुष्यों में एक विशेष प्रकार का तनाव पैदा हो जाता है जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और जीवाणु भी शरीर में जाकर बीमारी पैदा कर देता है। गर्मी के मौसम में निम्नलिखित बीमारियों का प्रकोप अधिक होता हैः

  1. थनैलाः
    थनैला रोग, थनों में संक्रमण से होता है। थनैला रोग के कीटाणु वातावरण व जानवर के शरीर में मौजूद रहते हैं। जब गाय व भैंस की शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है तब कीटाणु सक्रिय होकर थनैला रोग पैदा कर देते है। थनैला रोग होने पर पशु के थनों में सूजन आ जाती है तथा कुछ दिनों बाद पशु का बीमार थन खराब हो जाता है। कभी-कभी पशु को बुखार एवं चारा न खाने की शिकायत भी हो जाती है। थनैला रोग हो जाने पर पशु चिकित्सक से उपचार करवाना जरूरी हो जाता है एवं तुरन्त कार्यवाही की आवश्यकता होती है।
  2. हाइड्रो-सायनाइड एसिड विषाक्तताः
    गर्मी के मौसम में चरी, ज्वार व अन्य घासें झुलस जाती हैं तथा उनकी बढ़वार कम हो जाती है जिसके कारण इनके पौधे में सायनोजेनिक ग्लूकोसायड की मात्रा बढ़ जाती है तथा इस चारे को खाने से पशु में तीव्र सायनाइड विषाक्तता हो जाती है। प्रभावित पशु में कठिन स्वाँस, कँपकँपहाट तथा त्वरित मृत्यु के लक्षण पाये जाते है। इसके उपचार हेतु गाय भैंसों को 50 ग्राम सोडियम नायट्राइट तथा 15 ग्राम सोडियम थायोसल्फेट मिश्रण को 200 मि.ली. पानी में घोलकर पशु के खून में चढ़ा देना चाहिए तथा इस दवा की दूसरी खुराक 24-48 घंटे बाद अवश्य देनी चाहिए।
  3. गलघोंटूः
    गलघोंटू बीमारी गाय व भैसों की एक खतरनाक जानलेवा बीमारी है। यह बीमारी भारतवर्ष के लगभग सभी प्रदेशों के पशुओं में मृत्यु का एक मुख्य कारण है। इस बीमारी की वजह से पशुपालकों को काफी आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। यह बीमारी अधिक गर्मी व बरसात के मौसम मे होती है अधिक गर्मी व बरसात के कारण पशु की प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है और उसमें जीवाणु-पाश्चुरेला मल्टोसिडा का प्रकोप हो जाता है। इस बीमारी के मुख्य लक्षण तेज बुखार, हाँफना, नाक व मुँह से झागदार लार का गिरना, साँस लेने में कठिनाई का होना तथा गले में सूजन आना है। यह बीमारी गायों की अपेक्षा भैंसों में ज्यादा फैलती है तथा सही समय पर उपचार न होने से दो तीन दिन में पशु की मृत्यु हो जाती है। रोग ग्रसित पशु का सही समय पर पशु चिकित्सक से इलाज करवाना चाहिए।
  4. बछिया-बछड़ों में दस्तः
    नवजात बछडे़ एवं बछड़ियों में दस्त रोग का प्रकोप बहुत अधिकता में पाया जाता है। दस्त के द्वारा गाय व भैंस के बच्चों में मृत्यु दर बहुत अधिक होती है भैंस के बच्चों में पारजैविक दस्त (एस्कैरियोसिस) बहुत गंभीर बीमारी है जिससे बच्चों की प्रायः मृत्यु हो जाती है। जन्म के प्रथम एक दो सप्ताह दस्त के हिसाब से बहुत महत्वपूर्ण हैं तथा समय पर उपचार न होने की स्थिति में बच्चों की मुत्यु हो जाती है। नवजात पशुओं में दस्त निम्न प्रकार के होते है।
    नवजात पशुओं में जन्म के प्रथम कुछ सप्ताह में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है जिससे इनमें दस्त रोगों के जीवाणु का संक्रमण आसानी से हो जाता है एवं पशु रोग ग्रसित हो जाता है। प्रथम दूध कोलेस्ट्रम (खीस) में रोग प्रतिरोधक एंटीबाडीज बहुत अधिक मात्रा में पायी जाती हैं जो कि नवजात पशुओं को विभिन्न बीमारियों से बचाती हंै। प्रायः यह पाया गया है कि किसान नवजात पशुओं को खीस अज्ञानता वश नहीं पिलाते हैं जिसके कारण दस्त रोगों की संभावना बढ़ जाती है। अतः नवजात पशुओं को खीस पिलाना बहुत आवश्यक है जिससे की उन्हें बहुत सारी बीमारियों से बचाया जा सके। दस्त की गंभीरता के अनुसार पशु चिकित्सक की सलाह से उचित उपचार किया जा सकता है।