पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान क्यों और कैसे ?
प्रस्तुति – Dr. Anil Tomar
पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें सांड से वीर्य लेकर उसको विभिन्न क्रियाओं के माध्यम से सुरक्षित किया जाता है। यह संचित किया हुआ वीर्य तरल नाइट्रोजन में कई वर्षों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इस वीर्य को हीट में आई मादा के गर्भाशय में रखने से मादा पशु का गर्भाधान किया जाता है। गर्भाधान की इस क्रिया को कृत्रिम गर्भाधान कहा जाता है।
कृत्रिम गर्भाधान के लाभ :
प्राकृतिक गर्भाधान की तुलना में कृत्रिम गर्भाधान के अनेक लाभ है जिनमें मुख्य लाभ इस प्रकार है:-
1. कृत्रिम गर्भाधान बहुत दूर यहाँ तक कि दूसरे देशों में रखे श्रेष्ठ नस्ल व गुणों वाले सांड के वीर्य को भी गाय व भैंसों में प्रयोग करके लाभ उठाया जा सकता है।
2. इस विधि में उत्तम गुणों वाले बूढ़े या असहाय सांड का प्रयोग भी प्रजनन के लिए किया जा सकता है।
3. कृत्रिम गर्भाधान द्वारा श्रेष्ठ व अच्छे गुणों वाले सांड को अधिक से अधिक उपयोग किया जा सकता है।
4. प्राकृतिक विधि में एक सांड द्वारा एक वर्ष में 60–70 गाय या भैंस को गर्भित किया जा सकता है, जबकि कृत्रिम गर्भाधान विधि द्वारा एक सांड के वीर्य से एक वर्ष में हजारों गायों या भैंसों को गर्भित किया जा सकता है।
5. अच्छे सांड के वीर्य को उसकी मृत्यु के बाद भी प्रयोग किया जा सकता है।
6. इस विधि में धन एवं श्रम की बचत होती है क्योंकि पशु पालकों को सांड पालने की आवश्यकता नहीं होती।
7. इस विधि में पशुओं के प्रजनन सम्बंधित रिकार्ड रखने में आसानी होती है।
8. इस विधि में विकलांग या असहाय गायों/भैंसों का प्रयोग भी प्रजनन के लिए किया जा सकता है।
9. कृत्रिम गर्भाधान में सांड के आकार या भार का मादा के गर्भाधान के समय कोई फर्क नहीं पड़ता।
10. कृत्रिम गर्भाधान विधि में नर से मादा तथा मादा से नर में फैलने वाले संक्रामक रोगों से बचा जा सकता है।
कृत्रिम गर्भाधान की विधि की सीमायें :
कृत्रिम गर्भाधान के अनेक लाभ होने के बावजूद इस विधि की कुछ सीमाएँ हैं जो मुख्यतः निम्न प्रकार हैः-
1. कृत्रिम गर्भाधान के लिए प्रशिक्षित अथवा पशु चिकित्सक की आवश्यकता होती है तथा तक्नीशियन को मादा पशु प्रजनन अंगों की जानकारी होना आवश्यक है।
2. इस विधि में विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है।
3. इस विधि में असावधानी बरतने तथा सफाई का विशेष ध्यान ना रखने पर गर्भधारण देर में कमी आ जाती है।
4. इस विधि में यदि पूर्ण सावधानी न बरती जाए तो दूर क्षेत्रों अथवा विदेशों से वीर्य के साथ कई संक्रामक बीमारियों के आने की भी संभावना होती है।
कृत्रिम गर्भाधान के दौरान कुछ जरूरी सावधानियांः-
1. मादा ऋतु चक्र में हो।
2. कृत्रिम गर्भाधान करने से पहले गन को अच्छी तरह से लाल दवाई से धोये एवं साफ करें।
3. वीर्य को गर्भाशय द्वार के अंदर छोडे़। कृत्रिम गर्भाधान गन प्रवेश करते समय ध्यान रखें, कि यह गर्भाशय हाॅर्न तक ना पहुँचे।
4. गर्भाधान के लिए कम से कम 10–12 मिलियन सक्रिय शुक्राणु जरूरी होते है।
5. सभी पशु पालक कृत्रिम गर्भाधान संबंधित रिकार्ड रखें।
बेहतर गर्भधान दर के लिए निम्न बातें ध्यान रखेः-
1. वीर्य उच्च श्रेणी का हो।
2. कृत्रिम गर्भाधान की विधि का सही से अमल हो।
3. मादा ऋतु चक्र में हो तथा उसकी पहचान हो।
4. गर्भाधान के स्थान पर साफ-सफाई रखें।